Aughad Baba

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Tuesday, July 14, 2009

mangaldhanram


नीति और धर्म

सुधर्मा ! नीति चक्षु-हीन होती है l धर्म पांव - हीन होता है l एक अन्धा है तो एक लगड़ा है l सुधर्मा, शासक को चाहिये दोनों का समन्वय l जो कुशल शासक होता है, जन आकांक्षाओं को देनेवाला होता है, वह दोनों का समन्वय करता है, सुधर्मा l राष्ट्र् का गोरव बढ़ाने वाला होता है, राष्ट्र् में कीर्ति स्थापित करनेवाला होता है l नीति और धर्म अलग रहने से, मस्तक और पां का सन्तुलन नहीं बन पाता है l सुधर्मा ! यह कलह का कारण होता है l
जन-श्रुति है, सृष्टि के आदिकाल में आदि-पुरूष अंगूठे को मुँख में रखे हुए चूमते थे l तूने भी सुना है l सुधर्मा, यह इसी का द्योतक है l उस पुराण-पुरूष का यह रेखा-चित्र है, सुधर्मा l इसे जो जानता है, वह जन आकांक्षाओं का पूरक होता है सुधर्मा ! ऐसी दृष्टि अपनानी होगी, सुधर्मा l

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